Sunday, 11 September 2011


भोपाल गैस हत्याकांड भारत के लिए एक सबक (भाग )

राजीव दीक्षित
भारत देश में चल रही अंग्रेजियत वाली न्याय व्यवस्था का ही दुष्परिणाम हैभोपाल गैस हत्याकांड और उस पर आया जिला अदालत का फैसला | 25 साल और 6 माह तक चली अदालती कार्यवाही, 135 से अधिक प्रस्तुत हुए गवाह, 7 से अधिक बदले गए न्यायाधीश, 3000 से अधिक पन्नों पर लिखा गया फैसला | फैसला क्या है ? भोपाल में यूनियन कार्बाइड नाम की अमरीकी कंपनी के कारखाने में 3 दिसंबर 1984 की रात को जहरीली मिथाइल आइसो साइनेट गैस के रिसाव के कारण एक ही रात में लगभग 17000 लोग मर गए थे | और अभी तक 35000 मर चुके हैं | 5 लाख से अधिक जीवित लोगों पर इस जहरीली गैस मिथाइल आइसो साईंनाइड का दुष्प्रभाव पड़ा है | जो मर गए वो तो मुक्त हो गए | लेकिन जो जीवित रह गए हैं उनका हाल मरे हुओं से बदतर है | इस हत्याकांड के बाद पैदा हुए बच्चों पर जेनेटिक दुष्प्रभाव भी गहरा पड़ा है | सारी दुनिया के औद्योगिक इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी त्रासदी मानी गयी है ये दुर्घटना | 1986 में इस दुर्घटना के बारे में अदालती कार्यवाही शुरू हुयी और 26 साल बाद अभी 6 जून 2010 को फैसला आया है | इस फैसले में अमरीकी कंपनी यूनियन कार्बाइड को छोड़ दिया गया है | इस अमरीकी कंपनी के भारतीय साझेदार केशव महिन्द्रा और उनके सहयोगियों को 2 साल की जेल, जिसमे कभी भी जमानत हो सकती है, दी गयी है |



अदालत का फैसला आने के कुछ ही घंटों बाद केशव महिन्द्रा और उनके सहयोगियों को जमानत पर छोड़ दिया गया | इस पूरे हत्याकांड के लिए जिम्मेदार प्रमुख अभियुक्त वारेन एंडरसन को अदालत, भारत की पुलिस और सरकार कभी भी गिरफ्तार नहीं कर सकी | एक बार वारेन एंडरसन को पकड़ा भी गया था लेकिन अमरीका के दबाव में तत्कालीन केन्द्र राज्य सरकारों के आदेश पर उसे भारत से भगा दिया गया | भोपाल के गैस पीड़ित पिछले 25 सालों से जिस न्याय की प्रतीक्षा कर रहे थे, वह भी उन्हें नहीं मिला | ऐसा साफ दिखाई दे रहा है की न्याय के नाम पर गत 25 सालों से भोपाल के गैस पीड़ित नागरिकों के साथ खिलवाड़ किया गया है | इस पूरे मामले में ऐसा साफ़ दिखाई दे रहा है कि भारत सरकार ने विदेशी कंपनियों और अमरीकी दबाव के सामने शर्मनाक आत्मसमर्पण कर दिया है |

भारत में सभी राजनैतिक दलों की सरकारों द्वारा अकारण ही विदेशी कंपनियों को सभी तरह की सुविधाओं के साथ बुलावा दिया जाता है | इसके लिए वैश्वीकरण और उदारीकरण की नीतियों का सहारा लिया जाता है | इसमें सबसे बड़ा तर्क विदेशी कंपनियों के समर्थन में ये होता है की जब विदेशी कंपनियां आती है तो आधुनिकतम तकनीकी और उच्चतम तकनीकी लेकर आती हैं | यूनियन कार्बाइड भी अमरीका से आधुनिकतम और उच्चतम तकनीक लेकर आई थी और कारखाना लगाया था | उसी अमरीकी उच्च और आधुनिक तकनीक वाले कारखाने में 3 दिसंबर 1984 को टैंकर में से जहरीली गैस मिथाइल आइसो साइनेट का रिसाव हुआ , जिसके कारण यह दुर्घटना हुयी थी |

यदि तकनीक जो अमरीका से आई वह उच्चतम और आधुनिक थी, तो जहरीली गैस का रिसाव कैसे हो गया ? यदि तकनीक उच्चतम और आधुनिक थी तो घंटों तक होते रहे गैस के रिसाव को रोक क्यों नहीं पाए ? क्या यूनियन कार्बाइड के अधिकारीयों को इस जहरीली गैस का मनुष्य शारीर पर होने वाले दुष्प्रभाव के बारे में कोई ज्ञान नहीं था ? और यदि था तो उसके बचाव का कोई रास्ता उनके पास क्यों नहीं था ? अमरीका और यूरोप में जिन जहरीले कीटनाशकों और जंतुनाशकों को बनाना और बेचना बंद है , उन्ही को भारत में बनाने और बेचने के लिए यूनियन कार्बाइड भारत में क्यों आई ? क्या जब उसको लाइसेंस दिया गया तब मिथाइल आइसो साइनेट जैसी जहरीली गैस के दुष्प्रभावों के बारे में सरकार को मालूम नहीं था या घूस खा कर लाइसेंस दिया गया ?

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